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हर हर महादेव

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  वो जिसके केश में हो गंग  और हो वेश एक निहंग सा वो जिसका रूप हो अनंग  और हो मन किसी विहंग सा..... वो जिसके कंठ में हो विष और ग्रीव-माल एक भुजंग सा हो गण में जिसके भूत - प्रेत मग़र स्नेह वाणी में सत्संग सा..... वो जिसके हस्त में त्रिशूल हो और क्रोध का उबाल हो हो सक्त भी, आसक्त भी किन्तु स्वरूप हो पावन उमंग सा..... वो जिसकी शक्ति का न अंत हो पर हो दंभ से विरक्त सा जो ख़ुद में सर्वकार हो  दर्श में आनंद एक तरंग सा..... चर भी वो, है अचर भी वो है नारी भी वो और नर भी वो, वही सूक्ष्म है, वही तनु भी है वही पशुपति, परमेश्वर भी वो..... वो जो काल का भी काल हो हो छद्म फिर भी विकराल हो मद भी हो महेश्वर भी हो  किन्तु भान सर्वकाल हो..... वो देव हो, महादेव हो समस्त सृष्टि का वो जैव हो वो निशि भी हो, हो रैन भी किन्तु कल्याण हो सर्वस्व का..... जो रक्त का पिपासु भी और जीवन का वो जिज्ञासु भी  वो श्वास भी , वो मृत्यु भी शकल सृष्टि का अविनाशी भी..... हो वृषभ जिसका वाहन और पिशाच जिसके भ्रत्य हों जो चर-अचर हो ख़ुद में ही भ्रषंश ताण्डव जिसका नृत्य हो...... वही भूत है, भविष्य है वही ...