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मैं महादेव हो जाना चाहता हूँ......!!

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कड़ी तपस्या में लीन हो मैं वो शक्ति पाना चाहता हूँ, खोल कर तीसरी आँख सारी दुनिया को मिटाना चाहता हूँ, मैं महादेव हो जाना चाहता हूँ.....१ ये धर्म के टण्टे ये जातियों का घटियापन, मानसिक मलीनता और सोच का छिछलापन, ये सारी की सारी  बुराइयां मिटाना चाहता हूँ मैं महादेव हो जाना चाहता हूँ.....२ ये सत्ता का मद ये विरोध का घिनौनापन, ये ताकत का घमण्ड और पदवी का विषैलापन, ये सारी की सारी दास्ताँ भुलाना चाहता हूँ मैं महादेव हो जाना चाहता हूँ....३ ये अमीरों का रवैया गरीबों का शोषण, ये भूखी तड़पती गरीबी और बच्चों का कुपोषण, ये घटिया दृश्य मैं बिल्कुल भुलाना चाहता हूं मैं महादेव हो जाना चाहता हूँ.....४ ये झुठी सी भक्ति और हिंसा का प्रहार, ये कुटिल सी संस्क्रति और विक्षिप्त संस्कार, ये सारे के सारे मैं जड़ से मिटाना चाहता हूँ मैं महादेव हो जाना चाहता हूँ....५ ये जलती हुयी आत्मायें और गिद्धों से नुचती हुयी लाशें, ये भूख से बिलखता बचपन और नशे में धुत्त बाप की फ़रमाइशें, मैं इन चीखते मंजरों का एक अंत पाना चाहता हूँ मैं महादेव हो जाना चाहता हूँ.......६ ...

नन्हीं चिड़िया की याद सताती है

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गर्मी के मौसम में जब-जब  शहर की तीखी धूप मुझे अखरती है, सड़कों से उगलती गर्मी और पक्के कमरों की दीवार भभकती है, तब गर्म छतों पर रहने वाली उस नन्हीं चिड़िया की याद सताती है...........१ चिलचिलाती धूप की चादर मेरे सर को जब छू कर जाती है, गर्म हवा, लू और लपट के थपेड़ो से रँगत मुरझा जाती है, तब पल भर की छाँव को तरसने वाली उस नन्हीं चिड़िया की याद सताती है............२ जब पी-पी क़र पानी दिन भर भी प्यास नहीँ बुझ पाती है, कदम-दो-कदम चलते ही मिट्टी में सारी ताक़त मिल जाती है, तब बूँद-बूँद को तरसने वाली उस नन्हीं चिड़िया की याद आती है..........३ जब कड़क धूप की किरणें मेरे बदन को सहला जाती हैँ, मन पागल सा हो जाता है मानो सारी खुशियाँ पिघल जाती हैं, तब गर्म आसमाँ में उड़ने वाली उस नन्हीं चिड़िया की याद सताती है.........४ गर्म हवा के अन्धड़ से गुजर कोई अपना जब घर को आता है, देख के कुम्हलाया हुआ चेहरा दिल मौसम को कितनी दुत्कार लगाता है, ऐसे में कोमल पँखो वाली उस नन्हीं चिड़िया की याद सताती है.........५ गर्मी को दोपहरों में जब बाहर निकलना पड़ जाता है, दिल चीखें कितनी ...

मैं आवारा हूँ

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फ़िज़ाओं ये बन्दिशें न लगाओ मुझ पर, मैं आवारा हूँ हर गिरफ्त छोड़ जाउँगा.........१ हवाओं न इस तरह इतराओ ख़ुद पर, मैं आज़ाद पँछी हूँ तेरी जद से तेज उड़ जाउँगा.......२ बादलोँ यूँ गरज़ कर न डराओ मुझे, मैं बंजर ज़मीन हूँ हर बूँद निगल जाऊँगा.............३ पहाड़ों न ऊँचाइयों का ख़ौफ़ कराओ मुझको, मैं बाज हूँ तुझसे ऊँचा उड़कर निकल जाऊँगा.........४ दरियाओं न गहराई का मुझको वास्ता देना, मैं साग़र हूँ तुझे ख़ुद के अन्दर समा जाऊँगा..........५ तमाम दौलतों की मुझे रिश्वतें मत देना, मैं फ़क़ीर हूँ हर ख़ज़ाने से मुँह मोड़ जाऊँगा.............६ न इश्क़ - न हुस्न की तलब मुझमेँ रह गयी है, मैं बेख्याल हूँ तुझको कर बेहाल छोड़ जाऊँगा...........७ न महलों की ख़्वाहिश न रेशम की ही जरूरत है, मैं बंजारा हूँ फटे-हाल हो आसमाँ को छत बनाऊँगा........८ न लोगोँ की न शहरों की ही लज़्ज़त है मुझको, मैं रिन्द हूँ मयख़ाने में ही हद से गुज़र जाऊँगा............९ न जीने - न मरने की दास्ताँ सुनाओ तुम, मैं इश्क़ से गुजरा हूँ हर ज़हर निग़ल जाऊँगा..............१०

कोई और भी है तेरा

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कोई और भी है जो तेरे करीब रहता है शायद, आखिर यूँ ही तो नहीँ तुम मुझसे दूरियाँ बढ़ा रहे होे.....1 कोई और भी है जो तेरा ख्याल रखता है शायद, आखिर यूँ ही तो नहीँ तो बेख्याल होते जा रहे हो......2 कोई और भी है जो तुझसे वफ़ा कर रहा है शायद, आखिर यूँ ही तो नहीँ तुम बेवफा होते जा रहे हो.......3 कोई और भी है जो तेरे हुस्न का मुरीद है शायद, आखिर यूँ ही तो नहीँ तुम बेफिकर होते जा रहे हो......4 कोई और भी है जो तुझे याद करता है हरदम आखिर यूँ ही तो नहीँ तुम मुझको भुला रहे हो.........5 कोई और भी है जो तुझे बेइंतेहा चाहता है शायद, आखिर यूँ ही तो नहीँ तुम मेरी चाहतें भुला रहे हो......6 कोई और भी है जो तेरे ख़्वाबों में बस रहा है आखिर यूँ ही तो नहीँ तुम मुझे रक़ीब बुला रहे हो.......7 कोई और भी है जो तेरी साँसों में महक रहा है आखिर यूँ ही तो नहीँ तुम बहकते जा रहे हो..........8 कोई और भी है जो तेरी नज़रों में रहने लगा है आखिर यूँ ही तो नहीँ तुम मुझसे नजरें फिरा रहे हो.....9 कोई और भी है जो तुझको अपना सा लग रहा है, आखिर यूँ ही तो नहीँ तुम गैर होते जा रहे हो........10

जुबान खामोश हो जाती है

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जुबान खामोश हो जाती है मेरी हलक सूखने लगता है जब भी तेरी जुबान पे नाम उस गैर का आता है……..!!!!! आजिज मेरा वजूद महसूस होता है विचारों में अंधड़ सा आ जाता है, जब भी तेरी ज़ुबान पे नाम उस गैर का आता है…….!!!! फीका-फीका सा मुझको आफ़ताब नजर आता है मेरी आदमियत बदल जाती है जब भी तेरी जुबान पे नाम उस गैर का आता है……..!!!!! इकबाल से ऐतबार उठ जाता है इज्तिरार सी रूह में उमड़ पड़ती है जब भी तेरी ज़ुबान पे नाम उस गैर का आता है……..!!!!! उरियाँ सी मेरी शख्सियत नजर आती है उजाड़ सा ये जहाँ लगने लगता है जब भी तेरी ज़ुबान पे नाम उस गैर का आता है……….!!!!! कजा खुद का कत्ल करता है क़फ़स सा ये जहाँ महसूस होता है, जब भी तेरी ज़ुबान पे नाम उस गैर का आता है……..!!!!!! खुदी खुद में चूर हो जाती है खलिश तेरी, खियाबाँ में महसूस होती है जब भी तेरी ज़ुबान पे नाम उस गैर का आता है……..!!!!!!

ऐसा भी होता है

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लो अब यहाँ ऐसा भी होता है जागती है हैवानियत इन्सान मग़र बेफिक्र हो सोता है…….! झुक जाते हैं महफ़िल के तमाम चेहरे खुद-ब-खुद, जिक्र इन्सानियत का जहाँ होता है लो अब यहाँ ऐसा भी होता है…….!! आ जाते हैं परिन्दे खुद ही से जिन्दा लाश को नोचने कत्ल इन्सानियत का जहाँ होता है लो अब यहाँ ऐसा भी होता है…….!!! टूटकर बिखर जाते हैं खुद-ब-खुद दिल के अरमान सारे कोख में बेटी का जीवन खत्म होता है लो, अब यहाँ ऐसा भी होता है…….!!!! चन्द कागज के टुकड़ों के लालच में कितनी बहुओं का जिस्म जिन्दा सुलग जाता है लो, अब यहाँ ऐसा भी होता है……..!!!!! गैरों पे क्या भरोसा, विश्वास क्या डर तो भाई को भाई से होता है जब घात पर घात हर घात पर प्रतिघात होता है लो, अब यहाँ ऐसा भी होता है………!!!!!! मर्म दिल का नहीं जानते अपनों के अब सगा तो बस अच्छे हालात वाला होता है लो, अब यहाँ ऐसा भी होता है…….!!!!!! दिन भर में कितने झूठ हम बोलते हैं सबसे कितनो का सोचना किसी की बरबादी से खत्म होता है लो अब यहाँ ऐसा भी होता है………!!!!!!!

वो तुम ही तो हो........👰👰

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इस जहाँ को भूलकर खुद को खुद में समेटकर अपनी इच्छाओं को बटोरकर अपने अंतर्मन को टटोलकर मेरी रूह जो चाहत भरा गीत गाती है वो गीत तुम ही तो हो…….! यादों में खोकर सर्द मौसम में गर्म सांसों की तपिश से मदहोश खोकर वो गुजरे हुये लम्हों की चादर ओढ़कर तेरे लबों से निकले हर अल्फाज को बेतहाशा चूमकर जो आशा मुझे खुद में वापस लाती है वो मनमीत तुम ही तो हो…….!! तुझ से चाँद की आश में सूरज की लाली को छोड़कर तुझे पाने को इस सारे जहाँ से मुँह मोड़कर तेरे आगोश में आने को ये महफ़िल-ओ-रुआब से सदा के लिये नाता तोड़कर जो चाह मुझे खीँच ले जाती है वो गम-ओ-गुसार तुम ही तो हो…….!!! जहाँ की शर्म-ओ-हया को छोड़कर जिसके ख्याल में मशगूल हूँ मुफलिसी में भी दिन कई गुजारकर जिसके इश्क की पनाह का कायल हूँ वो जानशीं मेरा हमसफ़र मेरे ख्यालो की आराइश तुम ही तो हो…..!!!!