जुबान खामोश हो जाती है
 
      जुबान खामोश हो जाती है मेरी   हलक सूखने लगता है   जब भी तेरी जुबान पे   नाम उस गैर का आता है……..!!!!!    आजिज मेरा वजूद महसूस होता है   विचारों में अंधड़ सा आ जाता है,   जब भी तेरी ज़ुबान पे   नाम उस गैर का आता है…….!!!!    फीका-फीका सा मुझको   आफ़ताब नजर आता है   मेरी आदमियत बदल जाती है   जब भी तेरी जुबान पे   नाम उस गैर का आता है……..!!!!!    इकबाल से ऐतबार उठ जाता है   इज्तिरार सी रूह में उमड़ पड़ती है   जब भी तेरी ज़ुबान पे   नाम उस गैर का आता है……..!!!!!    उरियाँ सी मेरी शख्सियत नजर आती है   उजाड़ सा ये जहाँ लगने लगता है   जब भी तेरी ज़ुबान पे   नाम उस गैर का आता है……….!!!!!    कजा खुद का कत्ल करता है   क़फ़स सा ये जहाँ महसूस होता है,   जब भी तेरी ज़ुबान पे   नाम उस गैर का आता है……..!!!!!!    खुदी खुद में चूर हो जाती है   खलिश तेरी, खियाबाँ में महसूस होती है   जब भी तेरी ज़ुबान पे  नाम उस गैर का आता है……..!!!!!!     
 
