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तेरी खुशबू में लिपटे हुए खत

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 तेरी खुशबू में  लिपटे हुए कुछ खत गदगद हुए जाते हैं रखे हुए दराज में, तेरी ख़ामोशी में  बिखरे हुए लिहाफ अब भी सिसकते हैं घर के किसी कोने में चुप सी आवाज़ में, तेरे मखमूर से  बदन की मादक मुश्क लिए मेरी कमीज़ अब भी टंगी है किंवाड़ के पीछे, तेरे लरज़ते हुए सुर्ख होंठो का एहसास लिए हुए एक तौलिया अब भी गुमान करता है अपने हुसूल-ओ-कामरानी पे, तेरे गेसुओं का स्याह संदलापन लिए वो तकिए खूब गुरुर करते हैं तेरे बदन के छुअन की कामयाबी पर, हमारे लम्स की मदमस्त आहों की  गवाह दीवारें खुद को कमजर्फ कहते हुए तुझे ढूंढती हैं ऐसे दौर - ए -खलवत में मेरे फजूल चुटकुलों पे  तेरे कहकहों की आवाज लिए क्या क्या बाते गढ़ते हैं घर के कमरे सारे, और तेरी कुरबतों की उल्फतों का अथाह दरिया लिए खुदी बहती रहती है किसी बवंडर में.......!!

मैं महादेव हो जाना चाहता हूँ......!!

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कड़ी तपस्या में लीन हो मैं वो शक्ति पाना चाहता हूँ, खोल कर तीसरी आँख सारी दुनिया को मिटाना चाहता हूँ, मैं महादेव हो जाना चाहता हूँ.....१ ये धर्म के टण्टे ये जातियों का घटियापन, मानसिक मलीनता और सोच का छिछलापन, ये सारी की सारी  बुराइयां मिटाना चाहता हूँ मैं महादेव हो जाना चाहता हूँ.....२ ये सत्ता का मद ये विरोध का घिनौनापन, ये ताकत का घमण्ड और पदवी का विषैलापन, ये सारी की सारी दास्ताँ भुलाना चाहता हूँ मैं महादेव हो जाना चाहता हूँ....३ ये अमीरों का रवैया गरीबों का शोषण, ये भूखी तड़पती गरीबी और बच्चों का कुपोषण, ये घटिया दृश्य मैं बिल्कुल भुलाना चाहता हूं मैं महादेव हो जाना चाहता हूँ.....४ ये झुठी सी भक्ति और हिंसा का प्रहार, ये कुटिल सी संस्क्रति और विक्षिप्त संस्कार, ये सारे के सारे मैं जड़ से मिटाना चाहता हूँ मैं महादेव हो जाना चाहता हूँ....५ ये जलती हुयी आत्मायें और गिद्धों से नुचती हुयी लाशें, ये भूख से बिलखता बचपन और नशे में धुत्त बाप की फ़रमाइशें, मैं इन चीखते मंजरों का एक अंत पाना चाहता हूँ मैं महादेव हो जाना चाहता हूँ.......६ ...

वो तुम ही तो हो........👰👰

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इस जहाँ को भूलकर खुद को खुद में समेटकर अपनी इच्छाओं को बटोरकर अपने अंतर्मन को टटोलकर मेरी रूह जो चाहत भरा गीत गाती है वो गीत तुम ही तो हो…….! यादों में खोकर सर्द मौसम में गर्म सांसों की तपिश से मदहोश खोकर वो गुजरे हुये लम्हों की चादर ओढ़कर तेरे लबों से निकले हर अल्फाज को बेतहाशा चूमकर जो आशा मुझे खुद में वापस लाती है वो मनमीत तुम ही तो हो…….!! तुझ से चाँद की आश में सूरज की लाली को छोड़कर तुझे पाने को इस सारे जहाँ से मुँह मोड़कर तेरे आगोश में आने को ये महफ़िल-ओ-रुआब से सदा के लिये नाता तोड़कर जो चाह मुझे खीँच ले जाती है वो गम-ओ-गुसार तुम ही तो हो…….!!! जहाँ की शर्म-ओ-हया को छोड़कर जिसके ख्याल में मशगूल हूँ मुफलिसी में भी दिन कई गुजारकर जिसके इश्क की पनाह का कायल हूँ वो जानशीं मेरा हमसफ़र मेरे ख्यालो की आराइश तुम ही तो हो…..!!!!