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कलंकी बेटा

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   वैसे तो अमित हम सबसे बिलकुल भी अलग नहीं था, सिवाय इसके की वो बिन बाप का एक गरीब बेटा था, और प्रकृति की इस क्रूर नियत को हमारे गाँव के लोग समझते हुए भी नासमझी करते थे, और तरह - तरह की बातें करते थे ।          कितनी बार् मैंने खुद के ही घर में उसकी मां के खिलाफ गैर मर्दों से नाजायज सम्बन्ध रखने की बात सुनी होगी, लेकिन बचपन में इन चीजों का खासा मतलब नहीं पता होता था, तो जब भी सुना बेमतलब की बात समझ कर भूल गया ।          बेशक मैंने घरवालों से कयी बार डाँट खायी होगी की अमित के साथ मत खेला कर, वो ऐसा है उसकी माँ वैसी है, समाज में नाक कटती है हमारी, लेकिन मैं भी सब कुछ सुनता और भूल जाता, और मौका मिलते ही हम गाँव के मंदिर वाले मैदान में पहुँच जाते, और फिर होने दो कुश्ती तो कभी कबड्डी ।            खैर बचपन के दिन भी गली-मोहल्ले में कभी गुल्ली-डन्डा तो कभी लुका-छुपी खेलते हुए गुजर गए, वक्त बदलता रहा, हमारी उम्र के साथ-साथ ह...