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तेरी खुशबू में लिपटे हुए खत

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 तेरी खुशबू में  लिपटे हुए कुछ खत गदगद हुए जाते हैं रखे हुए दराज में, तेरी ख़ामोशी में  बिखरे हुए लिहाफ अब भी सिसकते हैं घर के किसी कोने में चुप सी आवाज़ में, तेरे मखमूर से  बदन की मादक मुश्क लिए मेरी कमीज़ अब भी टंगी है किंवाड़ के पीछे, तेरे लरज़ते हुए सुर्ख होंठो का एहसास लिए हुए एक तौलिया अब भी गुमान करता है अपने हुसूल-ओ-कामरानी पे, तेरे गेसुओं का स्याह संदलापन लिए वो तकिए खूब गुरुर करते हैं तेरे बदन के छुअन की कामयाबी पर, हमारे लम्स की मदमस्त आहों की  गवाह दीवारें खुद को कमजर्फ कहते हुए तुझे ढूंढती हैं ऐसे दौर - ए -खलवत में मेरे फजूल चुटकुलों पे  तेरे कहकहों की आवाज लिए क्या क्या बाते गढ़ते हैं घर के कमरे सारे, और तेरी कुरबतों की उल्फतों का अथाह दरिया लिए खुदी बहती रहती है किसी बवंडर में.......!!

देवों के देव महादेव

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  वो ज्ञान है, अज्ञान है वही जड़-चेतन, महापुराण है, वो राग है, वो गान है वो स्वरमयी भगवान है, वो काल है, विकराल है शितिकण्ठ वो, वही महाकाल है, वो सूक्ष्म है, विशाल है वही आज, वही अनंतकाल है, जीवन भी वो, है मृत्यु भी वही अनन्त है, सर्वज्ञ भी, भय भी वो, अभय भी वो है विश्वेश्वर, यज्ञमय भी वो, वो अस्त्र है, वही शस्त्र है वही स्वरमयी, परशुहस्त है, वो सक्त है, आसक्त है वही त्रिपुरान्तक, पंचवक्त्र है वो प्राण है,  पाषाण है वही शाश्वत, स्थाणु है, जय भी वो, विजय भी वो है व्योमकेश, मृत्युंजय भी वो, उत्पत्ति है, अवरोध है हर शक्ति का वही बोध है, प्रमाण है, प्रत्यक्ष है वही वामदेव, विरुपाक्ष है, वो अंत है, आरम्भ है वही अपवर्गप्रद, प्रारम्भ है, वो शूल है, वो पाणी है वो शामप्रिय, मृगपाणी है, वो भद्र है, अभद्र है वही गिरिश्वर वीरभद्र है, वो श्रष्टि है, वो दृष्टि है वही भगनेत्रविद, गंगवृष्टि है, सुघड़ भी वो, अवघड़ भी वो वही दुर्धुर्ष, व्रषभारूढ़ भी है, वो शान्त है, वो उग्र है वही दक्षाध्वरहर,  अव्यग्र है, वो प्रेम है, वही पाश है वही शिवाप्रिय सर्व -श्वास है, शिव भी वो, शंकर भी वो है दिगंब...

मैं ही ओंकार हूँ......!!

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मैं शूर हूँ मैं वीर हूँ मैं साहसों का धीर हूँ मैं वक़्त की पुकार हूँ हां... मैं ओंकार हूँ............१ मैं सत्य से डिगूँ नहीँ वैरी को भी छलूँ नहीँ, हर युद्ध का मैं सार हूँ हां... मैं ओंकार हूँ.............२ मैं द्वन्द में विजयी हूँ हर पाश में अजेय हूँ मैं शक्ति का आकार हूँ हां... मैं ओंकार हूँ............३ मैं आग से जलूँ नहीँ मैं शस्त्र से कटू नहीँ हर विघ्न का अंधकार हूँ हां... मैं ओंकार हूँ...........४ कोई मोह-पाश है नहीँ कोई द्वेष-भाव है नहीँ मैं ऊर्जा का संचार हूँ हां... मैं ओंकार हूँ...........५ कोई भय मुझे लगे नहीँ कोई क्षय मुझे छुये नहीँ मैं विकार का विकार हूँ हां... मैं ओंकार हूँ............६ मैं पाप पर नकेल हूँ निष्पाप का मैं खेल हूँ मैं सिंह की दहाड़ हूँ हां... मैं ओंकार हूँ............७ मैं पापियों का नाश हूँ हर पुण्य की मैं आस हूँ मैं श्रष्टि का संहार हूँ हां... मैं ओंकार हूँ............८ मैं राग हूँ - विराग हूँ दहकती एक आग हूँ मैं खुद में सर्वकार हूँ हां... मैं ओंकार हूँ.............९ मैं ज्ञान हूँ विज्ञान हूँ मैं वेद और पुराण...

मैं महादेव हो जाना चाहता हूँ......!!

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कड़ी तपस्या में लीन हो मैं वो शक्ति पाना चाहता हूँ, खोल कर तीसरी आँख सारी दुनिया को मिटाना चाहता हूँ, मैं महादेव हो जाना चाहता हूँ.....१ ये धर्म के टण्टे ये जातियों का घटियापन, मानसिक मलीनता और सोच का छिछलापन, ये सारी की सारी  बुराइयां मिटाना चाहता हूँ मैं महादेव हो जाना चाहता हूँ.....२ ये सत्ता का मद ये विरोध का घिनौनापन, ये ताकत का घमण्ड और पदवी का विषैलापन, ये सारी की सारी दास्ताँ भुलाना चाहता हूँ मैं महादेव हो जाना चाहता हूँ....३ ये अमीरों का रवैया गरीबों का शोषण, ये भूखी तड़पती गरीबी और बच्चों का कुपोषण, ये घटिया दृश्य मैं बिल्कुल भुलाना चाहता हूं मैं महादेव हो जाना चाहता हूँ.....४ ये झुठी सी भक्ति और हिंसा का प्रहार, ये कुटिल सी संस्क्रति और विक्षिप्त संस्कार, ये सारे के सारे मैं जड़ से मिटाना चाहता हूँ मैं महादेव हो जाना चाहता हूँ....५ ये जलती हुयी आत्मायें और गिद्धों से नुचती हुयी लाशें, ये भूख से बिलखता बचपन और नशे में धुत्त बाप की फ़रमाइशें, मैं इन चीखते मंजरों का एक अंत पाना चाहता हूँ मैं महादेव हो जाना चाहता हूँ.......६ ...

तू हर वक्त याद आया

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आँखों में आंसू और लबों पे उनका ही नाम आया होगा, बज्म-ए-यार से जब भी  कभी हमको बुलाया होगा……! हर अन्जुमन का अन्जाम हर बार एक ही आया होगा, मैं उसे ढूंढता रहा और वो किसी गैर के आगोश में समाया होगा....!! जबकि मेरे हर अज़ाब का अंदाजा उसने भी लगाया होगा, जरा ठिठका होगा, मग़र, दौलत की चकाचौन्ध ने फिर कहीँ मुझको भुलाया होगा…….!!! इल्म नहीं मुझको, ख़ुद को मेरे लिए क्यों अश्क़िया बनाया होगा, तमाम असफारात-ओ-इश्क से रूबरू हैं वो आखिर मुझमे उन्हें, कोई अस्काम नजर आया होगा…..!!!! देखकर तुझको ख्याल खानुम का मेरे जहन में उतर आया होगा, अफ़सोस मग़र देख गैर होता हुआ तुझको, गिरया फरमाया होगा…..!!!!! अब तलक इल्म है मुझको, तेरे शहर की आबो-हवा का, मत कहना कि मेरा इश्क बेचते हुये, तेरे ख्याल में मेरा अक्स ना आया होगा…..!!!!!! नीलाम होते हुए देखे हैं, कितने चश्म-ओ-चराग इस जहाँ में, यकीन है मुझको, ये जफ़ा करते हुये, एक बार तुझे लुटेरा याद तो आया होगा……!!!!!!!

अजनबी की तरह.......🖋🖋🖋🖋📝

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सुध - बुध सब खोकर जिसकी तलाश में भटका एक अरसा बाद वो मुझे मिला भी तो किसी अजनबी की तरह…..! सुख-चैन सब गंवाकर, खुद से खुद को चुराकर जिसे हर पल सीने से लगाये रखा, वो आज दूर गया मुझसे, तो किसी अजनबी की तरह……!! साँसों में उसका नाम सजाकर उसे अपनी धड़कनें बनाकर जिसे बेइंतहां चाहा वो मुझसे खफा भी हुआ तो किसी अजनबी की तरह.….!!! खुद को हर पल भुलाकर उसे अपना खुदा बनाकर हर दुआ में जिसको माँगा, वो गैर भी हुआ तो किसी अजनबी की तरह……!!!!

तुझको पाने की बेताबी.....🌹🌹

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खो गयी है हर झिझक, तुझको पाने की ही है ललक, बेकसी के दाग, दामन कर रहा है तर - बतर वो हर जफ़ा संगीन हो, मुझसे , तुझको जो कर रही है बेखबर……! न मैं, हो सकूँ तुंझसे खफा, ना तू बन सके मेरा हमसफ़र, आगाज तेरा हो रहा है, तेरी कमी फिर भी मगर, चाहतों की आश में दिल फिर रहा है दर - बदर……!! बिन अश्क नम आँखे हुयीं, सिवाय इश्क, सब बातें हुयीं कुदरतन तेरी चाह है, दिल माँगे तेरी पनाह है, तू करे या ना करे है मुझको तेरी ही फिकर, फिर भी बाकी है कसर……!!! इस खलिश को क्या कहूँ, तेरी चाह को क्या नाम दूँ, तू जानता है मुझको भी, तेरे बिन नहीं मेरा बसर, तेरे आगोश की अब चाह है, मुझमें नहीँ बाकी  सबर…….!!!! न कर सितम मुझपे सनम ना सब्र का इम्तेहान ले, गश खा रहीं हैं ख्वाहिशें, खुश्क से हालात हैं, नासाज होता मेरा हशर, तू लौट आ मेरी जिंदगी तेरे बिन कटता नहीँ लम्बा सफ़र…..!!!!! गर्त में है छुप रहा तेरे बिन जीवन मेरा, बंदिशे हों लाख ही तुझको चाहूँ फिर भी मगर, साँसे रहें या ना रहें दिल की यही एक चाह है, मुझमेँ तू मौजूद हो, ...

भूरा मर गया

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ना जाने क्यूँ, आज सुबह हर रोज की तरह नही लग रही थी, वैसे तो सब कुछ था शायद , पर कुछ कमी सी लग रही थी.......!!! मैँ सोचने लगा, पर कुछ समझ नही आया, काफी देर बाद अचानक से कुछ ख्याल आया, मैँ तुरन्त उठा , और सीधा रसोई घर मेँ गया.......!!! और सच मे, कुछ बदला था, रोज की तरह आज वो मूँगफली के दाने खतम नही हुए थे, और ना ही कुतरे हुए बिस्कुटो के छोटे - छोटे टुकडे पडे हुए थे, बल्कि पूरे के पूरे बिस्कुट पडे हुए थे.....!!! मुझे लगा शायद वो कहीँ चला गया, मुझे दुख तो हुआ, पर उस छोटे से भूरे चूहे ने अपना घर बदला होगा, ऐसा सोच कर मैँ चुप हो गया.....!!! काफी देर तक मन मेँ आते हुए अजीब ख्यालो को मारकर मै उठा ही था, और ब्रश करने लगा, कि तभी, मुझे आवाज आयी मेरे छोटे से कुत्ते की.....!!!! मैँ अन्दर गया, देखा कि वो सिलिन्डर के पीछे खडी होकर भौक रही थी, मुझे देखते ही वो चुप हो गयी, अपने छोटे - छोटे पँजो से कुछ इशारा भी कर रही थी.....!!!  मैँ मानव भावना से ग्रस्त हुआ, किसी अनहोनी के होने के भय से गम्भीर हुआ, मैने मुँह धोये बिना ही उसक...

दिल मेरा प्यार करता बहुत है

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तुम बार - बार पूछ्ती थी मुझसे, क्युँ हँसते बहुत हो ?? और मै नादान्, समझ लेता था कि तुम्हे अच्छा लगता है....!!! अच्छा होता कि जवाब दे देता मै तुमको, तो अब तुम्हारी इतनी कमी ना खलती मुझको, पर नही दिया, क्युँकि मै समझता था, कि तुम साथ नही छोडोगी मेरा, और फिर कभी बताउँगा, कि हँसता हूँ क्युँकि तुम्हारा साथ लगता अच्छा बहुत है.....!!! वैसे तो अब भी है मुझे इन्तजार तुम्हारा, कि तुम लौट्कर  आओगी कभी, पहले कि तरह ही सीने से मेरे लिपट जाओगी अभी, पर भूल है मेरी जो, बेवकूफी मे बदलती बहुत है.....!!! हाँ अच्छा ही होगा, कि तुम फिर लौटकर ना आओ, अब हुनर भी नही रह गया वो, कि तुम्हे पहले कि तरह प्यार कर पाउँ, खुश रख पाउँ, क्युँकि बेवजह्, बेरहम होकर तेरा ठुकराना मुझे, खटकता बहुत है.....!!! वैसे तो अब भी तुम मेरी हि हो, पर सिर्फ मेरे लिये, तुम्हारे लिये तो अब तुम उस सँगदिल की हो, पर अब भी जेहन मे याद तुम्हारी रहती बहुत है, दिल है मेरा जो तुम्हे चाहता है अब भी बेपनाह्, पर क्या करुँ, दुनिया को तेरा वजूद मुझमे अखरता बहुत है....!!!!...