ये तो याद होगा तुम्हें
 
      गाँव की कच्ची सड़क   के किनारे वाले तालाब   के पास छोटे बाग में   जितने भी पेंड़ थे   सभी परेशान हैं   मैं कल उनसे मिला था,   बहुत बातें की हमने   उनकी भी सुनी   खुद की भी सुनायी   तुम कैसे दूर चली गयी   इस बात से   सभी हैरान थे…….!    वो विशाल   महुआ का पेंड़ याद है न   जिसके नीचे   हम घण्टों बैठे रहते थे   सिर्फ इस इन्तजार में   कि कब कोई महुआ गिरे   और हम उसको   जमीन पर गिरने से पहले पकड़ लें   वो अब सूखने लगा है……..!!      और वो जामुन का पेंड़   जिसके किनारे   छोटी सी खाई थी,   तुम जामुन लेकर   उस खाई में बैठ जाती थी   और   वहाँ से मुझे जूठी गुठलियाँ   फेक-फेक कर मारा करती थी,   अब वो जामुन कोई नहीँ खाता   सब कहते हैं   उसमें वो मिठास नहीँ रही……!!!    और वो पीपल का पेंड़   अच्छा ठीक है, तुम ही सही   तुम्हारा वो दिल के पत्तों वाला पेंड़   वो भी पूछ रहा था   फिर कब आओगे   वही खेल खेलने   जिसमें पीपल के पत्ते से   तुम दो दिल बनाती थी   एक अपना और एक मेरा बताती थी   और   फिर उसे उसके ही कोटर में   अपने बालों से   बांधकर रख जाती थी   कि हम कभी अलग नहीँ होँगे   वो भी अकेलेपन से तड़प रहा है...
 
 
