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ये तो याद होगा तुम्हें

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गाँव की कच्ची सड़क के किनारे वाले तालाब के पास छोटे बाग में जितने भी पेंड़ थे सभी परेशान हैं मैं कल उनसे मिला था, बहुत बातें की हमने उनकी भी सुनी खुद की भी सुनायी तुम कैसे दूर चली गयी इस बात से सभी हैरान थे…….! वो विशाल महुआ का पेंड़ याद है न जिसके नीचे हम घण्टों बैठे रहते थे सिर्फ इस इन्तजार में कि कब कोई महुआ गिरे और हम उसको जमीन पर गिरने से पहले पकड़ लें वो अब सूखने लगा है……..!! और वो जामुन का पेंड़ जिसके किनारे छोटी सी खाई थी, तुम जामुन लेकर उस खाई में बैठ जाती थी और वहाँ से मुझे जूठी गुठलियाँ फेक-फेक कर मारा करती थी, अब वो जामुन कोई नहीँ खाता सब कहते हैं उसमें वो मिठास नहीँ रही……!!! और वो पीपल का पेंड़ अच्छा ठीक है, तुम ही सही तुम्हारा वो दिल के पत्तों वाला पेंड़ वो भी पूछ रहा था फिर कब आओगे वही खेल खेलने जिसमें पीपल के पत्ते से तुम दो दिल बनाती थी एक अपना और एक मेरा बताती थी और फिर उसे उसके ही कोटर में अपने बालों से बांधकर रख जाती थी कि हम कभी अलग नहीँ होँगे वो भी अकेलेपन से तड़प रहा है...

मेरा पहला स्पर्श

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मैं बहुत छोटा था ना माँ इसलिए मुझे याद नहीँ, लेकिन अभी समझ सकता हूँ कि वो तुम ही होगी जिसका ममतामयी #स्पर्श मुझे इस वीभत्स दुनिया में कदम रखते ही सबसे पहली बार मिला होगा…..! अबोध होने के कारण मुझे ज्ञात नहीँ पर आज महसूस कर सकता हूँ कि तमाम तकलीफें सहने के बाद भी, जब मैं तुम्हारी गोद में आया होऊंगा, तो तेरी हर तकलीफ भूलकर हर सौहार्द से बढ़कर निस्वार्थ हो तूने मुझे अपने दुलार और पुचकार के #स्पर्श से सहलाया होगा……!! बेशक तुम खुद भूखी रह जाती होगी लेकिन मुझको थोड़ी - थोड़ी देर में अपना दूध पिलाया होगा, मेरे गीले बिस्तर पर खुद सोकर, मुझको सूखे में सुलाया होगा, लाख परेशानियां दी हों मैंने तुमको, मगर तुमने मुझे हर संभव सुख का ही #स्पर्श कराया होगा.…!!! मेरे बड़े होते-होते तुमने कितनी यातनाएं सहन की होंगी मेरी गलतियों पे कितनी बार डाँट तुमको पड़ी होगी, मगर तुम सब  कुछ सह लेती होगी, और वक्त मिलते ही मुझे गोद में उठा चूमती हुयी थपकियाँ देती होगी और मैं होठों और हाँथों का दुनिया का सबसे स्वार्थ रहित और ममत...

ना मैं हिन्दू हूँ - ना ही मुसलमान हूँ

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मुझे ज़रा भी परवाह नहीं उन फिजूल के रिवाजों की, जो मुझे इंसान होने से रोके, जो कहना है कहते रहो, मैं तो ईद की सेवईयां और दिवाली की मिठाइयाँ एक साथ बैठकर खाऊंगा…….! मैं बेफिकर हूँ उन सियासत के चाटुकारों से जो मुझे इंसान होने से रोके, जो करना है करते रहो मैं तो मन्दिर की आरती में भी जाऊँगा और मस्जिद की नमाज में भी सर झुकाउंगा…..!! मुझे मतलब नहीं उन धर्म के ठेकेदारों से जो मुझे इंसान होने से रोके, जो करना है करते रहो मैं कुरआन भी पढूंगा और गीता के श्लोक भी गुनगुनाउंगा…..!!! मेरा रिश्ता नहीं समाज के उन तामीर दारों से जो मुझे इंसान होने से रोके, जो करना है करते रहो मैं तो भगवा रंग का कुर्ता और हरे रंग की धोती पहन कर आऊंगा……!!!! मुझे मोह नहीं उस चौखट से जो मुझे इंसान होने से रोके मेरे कदमों को बांधे, जो करना है करते रहो, मैं काशी विश्वनाथ का तिलक लगाकर मक्के मदीने भी जाऊँगा …..!!!!!

अजनबी की तरह.......🖋🖋🖋🖋📝

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सुध - बुध सब खोकर जिसकी तलाश में भटका एक अरसा बाद वो मुझे मिला भी तो किसी अजनबी की तरह…..! सुख-चैन सब गंवाकर, खुद से खुद को चुराकर जिसे हर पल सीने से लगाये रखा, वो आज दूर गया मुझसे, तो किसी अजनबी की तरह……!! साँसों में उसका नाम सजाकर उसे अपनी धड़कनें बनाकर जिसे बेइंतहां चाहा वो मुझसे खफा भी हुआ तो किसी अजनबी की तरह.….!!! खुद को हर पल भुलाकर उसे अपना खुदा बनाकर हर दुआ में जिसको माँगा, वो गैर भी हुआ तो किसी अजनबी की तरह……!!!!