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जुबान खामोश हो जाती है

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जुबान खामोश हो जाती है मेरी हलक सूखने लगता है जब भी तेरी जुबान पे नाम उस गैर का आता है……..!!!!! आजिज मेरा वजूद महसूस होता है विचारों में अंधड़ सा आ जाता है, जब भी तेरी ज़ुबान पे नाम उस गैर का आता है…….!!!! फीका-फीका सा मुझको आफ़ताब नजर आता है मेरी आदमियत बदल जाती है जब भी तेरी जुबान पे नाम उस गैर का आता है……..!!!!! इकबाल से ऐतबार उठ जाता है इज्तिरार सी रूह में उमड़ पड़ती है जब भी तेरी ज़ुबान पे नाम उस गैर का आता है……..!!!!! उरियाँ सी मेरी शख्सियत नजर आती है उजाड़ सा ये जहाँ लगने लगता है जब भी तेरी ज़ुबान पे नाम उस गैर का आता है……….!!!!! कजा खुद का कत्ल करता है क़फ़स सा ये जहाँ महसूस होता है, जब भी तेरी ज़ुबान पे नाम उस गैर का आता है……..!!!!!! खुदी खुद में चूर हो जाती है खलिश तेरी, खियाबाँ में महसूस होती है जब भी तेरी ज़ुबान पे नाम उस गैर का आता है……..!!!!!!

ऐसा भी होता है

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लो अब यहाँ ऐसा भी होता है जागती है हैवानियत इन्सान मग़र बेफिक्र हो सोता है…….! झुक जाते हैं महफ़िल के तमाम चेहरे खुद-ब-खुद, जिक्र इन्सानियत का जहाँ होता है लो अब यहाँ ऐसा भी होता है…….!! आ जाते हैं परिन्दे खुद ही से जिन्दा लाश को नोचने कत्ल इन्सानियत का जहाँ होता है लो अब यहाँ ऐसा भी होता है…….!!! टूटकर बिखर जाते हैं खुद-ब-खुद दिल के अरमान सारे कोख में बेटी का जीवन खत्म होता है लो, अब यहाँ ऐसा भी होता है…….!!!! चन्द कागज के टुकड़ों के लालच में कितनी बहुओं का जिस्म जिन्दा सुलग जाता है लो, अब यहाँ ऐसा भी होता है……..!!!!! गैरों पे क्या भरोसा, विश्वास क्या डर तो भाई को भाई से होता है जब घात पर घात हर घात पर प्रतिघात होता है लो, अब यहाँ ऐसा भी होता है………!!!!!! मर्म दिल का नहीं जानते अपनों के अब सगा तो बस अच्छे हालात वाला होता है लो, अब यहाँ ऐसा भी होता है…….!!!!!! दिन भर में कितने झूठ हम बोलते हैं सबसे कितनो का सोचना किसी की बरबादी से खत्म होता है लो अब यहाँ ऐसा भी होता है………!!!!!!!

वो तुम ही तो हो........👰👰

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इस जहाँ को भूलकर खुद को खुद में समेटकर अपनी इच्छाओं को बटोरकर अपने अंतर्मन को टटोलकर मेरी रूह जो चाहत भरा गीत गाती है वो गीत तुम ही तो हो…….! यादों में खोकर सर्द मौसम में गर्म सांसों की तपिश से मदहोश खोकर वो गुजरे हुये लम्हों की चादर ओढ़कर तेरे लबों से निकले हर अल्फाज को बेतहाशा चूमकर जो आशा मुझे खुद में वापस लाती है वो मनमीत तुम ही तो हो…….!! तुझ से चाँद की आश में सूरज की लाली को छोड़कर तुझे पाने को इस सारे जहाँ से मुँह मोड़कर तेरे आगोश में आने को ये महफ़िल-ओ-रुआब से सदा के लिये नाता तोड़कर जो चाह मुझे खीँच ले जाती है वो गम-ओ-गुसार तुम ही तो हो…….!!! जहाँ की शर्म-ओ-हया को छोड़कर जिसके ख्याल में मशगूल हूँ मुफलिसी में भी दिन कई गुजारकर जिसके इश्क की पनाह का कायल हूँ वो जानशीं मेरा हमसफ़र मेरे ख्यालो की आराइश तुम ही तो हो…..!!!!

तू हर वक्त याद आया

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आँखों में आंसू और लबों पे उनका ही नाम आया होगा, बज्म-ए-यार से जब भी  कभी हमको बुलाया होगा……! हर अन्जुमन का अन्जाम हर बार एक ही आया होगा, मैं उसे ढूंढता रहा और वो किसी गैर के आगोश में समाया होगा....!! जबकि मेरे हर अज़ाब का अंदाजा उसने भी लगाया होगा, जरा ठिठका होगा, मग़र, दौलत की चकाचौन्ध ने फिर कहीँ मुझको भुलाया होगा…….!!! इल्म नहीं मुझको, ख़ुद को मेरे लिए क्यों अश्क़िया बनाया होगा, तमाम असफारात-ओ-इश्क से रूबरू हैं वो आखिर मुझमे उन्हें, कोई अस्काम नजर आया होगा…..!!!! देखकर तुझको ख्याल खानुम का मेरे जहन में उतर आया होगा, अफ़सोस मग़र देख गैर होता हुआ तुझको, गिरया फरमाया होगा…..!!!!! अब तलक इल्म है मुझको, तेरे शहर की आबो-हवा का, मत कहना कि मेरा इश्क बेचते हुये, तेरे ख्याल में मेरा अक्स ना आया होगा…..!!!!!! नीलाम होते हुए देखे हैं, कितने चश्म-ओ-चराग इस जहाँ में, यकीन है मुझको, ये जफ़ा करते हुये, एक बार तुझे लुटेरा याद तो आया होगा……!!!!!!!

अजनबी की तरह.......🖋🖋🖋🖋📝

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सुध - बुध सब खोकर जिसकी तलाश में भटका एक अरसा बाद वो मुझे मिला भी तो किसी अजनबी की तरह…..! सुख-चैन सब गंवाकर, खुद से खुद को चुराकर जिसे हर पल सीने से लगाये रखा, वो आज दूर गया मुझसे, तो किसी अजनबी की तरह……!! साँसों में उसका नाम सजाकर उसे अपनी धड़कनें बनाकर जिसे बेइंतहां चाहा वो मुझसे खफा भी हुआ तो किसी अजनबी की तरह.….!!! खुद को हर पल भुलाकर उसे अपना खुदा बनाकर हर दुआ में जिसको माँगा, वो गैर भी हुआ तो किसी अजनबी की तरह……!!!!

तुझको पाने की बेताबी.....🌹🌹

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खो गयी है हर झिझक, तुझको पाने की ही है ललक, बेकसी के दाग, दामन कर रहा है तर - बतर वो हर जफ़ा संगीन हो, मुझसे , तुझको जो कर रही है बेखबर……! न मैं, हो सकूँ तुंझसे खफा, ना तू बन सके मेरा हमसफ़र, आगाज तेरा हो रहा है, तेरी कमी फिर भी मगर, चाहतों की आश में दिल फिर रहा है दर - बदर……!! बिन अश्क नम आँखे हुयीं, सिवाय इश्क, सब बातें हुयीं कुदरतन तेरी चाह है, दिल माँगे तेरी पनाह है, तू करे या ना करे है मुझको तेरी ही फिकर, फिर भी बाकी है कसर……!!! इस खलिश को क्या कहूँ, तेरी चाह को क्या नाम दूँ, तू जानता है मुझको भी, तेरे बिन नहीं मेरा बसर, तेरे आगोश की अब चाह है, मुझमें नहीँ बाकी  सबर…….!!!! न कर सितम मुझपे सनम ना सब्र का इम्तेहान ले, गश खा रहीं हैं ख्वाहिशें, खुश्क से हालात हैं, नासाज होता मेरा हशर, तू लौट आ मेरी जिंदगी तेरे बिन कटता नहीँ लम्बा सफ़र…..!!!!! गर्त में है छुप रहा तेरे बिन जीवन मेरा, बंदिशे हों लाख ही तुझको चाहूँ फिर भी मगर, साँसे रहें या ना रहें दिल की यही एक चाह है, मुझमेँ तू मौजूद हो, ...

बचपन ही है मेरा...😇😇

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बूढ़ी नीम के सूंखे तने से फूट कर निकला, कोमल - हरे पत्तोँ वाला बरगद का पेङ और उसके नीचे वाला कुआँ काफी हद तक मेरा बचपन ही हैं…...! वो गाँव के उस आखरी छोर पर लगभग खँडहर में तब्दील हो चुका पुराना मन्दिर, और प्रांगण में झुकी हुयी डाल वाला वो बड़ा सा आम का पेंड़, काफी हद तक मेरा बचपन ही हैं……!! जाड़े के मौसम में जलता हुआ बड़े से सूखे तने का अलाव, और छोटी - छोटी, धुँआ निकालती खोखली लकड़ियों को बड़े-बूढ़ों से नजर बचाकर बीड़ी समझकर पीना, काफी हद तक मेरा बचपन ही है…..!!! भरी बरसात में झूठ - मूठ फिसलना कीचड़ में गिरना फिर बारिश में नहाना, और जगह - जगह उगे आम के छोटे - छोटे पौधों से पपीहरी बना दिन भर उसे बजाना, काफी हद तक मेरा बचपन ही है…..!!!! गर्मी के मौसम में खलिहान की धुप से बेहाल होना मगर स्कूल से आते ही बस्ता फेंक गुल्ली डंडा खेलने दौड़ जाना, फिर किसी पोखरी - तालाब में नहाना, काफी हद तक मेरा बचपन ही है …..!!!!! मौसम कोई भी हो अपनी करतूतों पर निरंतर माँ से डाँट खाकर ताई जी के पास भाग जाना, फिर उनके ही...

ऐसा कैसा धर्म है ये ???

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मुझे बहुत हँसी आती है, जब कोई हिन्दु  देता है मुसल्मान को गाली, और मुसलमान जब बदला लेता है, हिन्दु की बेइज्जती करता, तो लोग हँसते हैँ बजा - बजा कर ताली....!!! गौर करने वाली बात तो ये है, कि हम वो लोग हैँ जो धर्म तो छोड ही दो, जाति और पहचान के नाम पर भी लडते हैँ....!!! हम इतने महान हैँ, कि एक हिन्दू होकर भी,  दूसरे हिन्दु को डसते हैँ......!!! कभी हम ब्राम्हड होने पर गर्व करते हैँ, तो कभी राजपूत होने का घमन्ड , कभी हम शूद्र कहलाते हैँ, तो कभी यदुवन्शी बनकर हो जाते हैँ प्रचन्ड्....!!!! अरे धिक्कार है हमपर , जो हम एक होकर भी कभी एक नही होते हैँ, आपस मे लड्ते रहते मरते रहते  है , और एक होने क! दिखावा करते हैँ....!!!! हममे से ही ना जाने कितने है, जो हिन्दुस्तानी ही नही होते हैँ, या तो वो बँगाली होते हैँ, कुछ पँजाबी होते हैँ, मराठी होता है कोई, तो कितने बिहारी होते हैँ......!!!!! कितनी विभिन्नतायेँ है हममे,  फिर भी हम खुद को एक कहते हैँ, शर्म नही आती हमको, कि हम दूसरे को बुरा, और खुद को नेक कहते...

निकम्मा

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तमाम जिन्दगी मैने खुद को उजडते देखा, तडपते देखा, और मोहब्बत मे बिगडते देखा, पर कोशिश नही की कभी कि सम्हल जाउँ, कितना निकम्मा हूँ ना मैँ......!!!!!

RAPE "or" RAGE

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                    RAPE or RAGE -:     May be I am hurting someone, i don't know exactly..... but all I can say - it is true.      Rape is becoming the rage of these days..... most of us are feeling proud by harassing a girl. By making them embaress. Thus why we are attempting rape in many ways.          rape is not only when you forcefully do sex with a girl or  Though there are many other ways of rape.....       In my words i would simply say that -  "whatever you do with a girl without her permission and she is getting embarressed is a rape."                   OR      : Whenever we harass a girl is a rape."        Though not only me,  everyone knows that rape is a creepy and coward piece of work of our own mentality and thinkning, still it is happening one ...

wat is it ??

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The relaxation is when your serenity is in you, Nor You are afraid of loosing anyone or anything, Neither anyone has left you, You have the feeling of completeness, And all the resources of your happiness is arround you......... The comfortness is when your reality is in you, You have no fear of disclosing the facts and secrets, And, The issues,  the situations are exactly according to you....... The satisfaction is when you have enough, Yes just enough, Virtually all your need are done, The greed has finished, Eventually the feeling of completeness has arrived.....

तुम ही वो हो

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वेदना , कश्ट , दुख - दर्द , तकलीफ , और भी बहुत सी ऐसी ही अप्रिय भाव , मेरी जिन्दगी मे सिर्फ तब - तब आते हैँ, कि जब भी मैँ तेरी यादो की पोटली खोल कर बैठता हूँ, जरा सा पीछे लौट्कर जाता हूँ, और तेरे पहलू मे बिताये हुए वो पल याद करता हूँ, जब भी याद करता हुँ कि तुम ही वो थी जिसे मैने चाहा था, और तुम ही वो हो जिसने मुझे सिर्फ अपने प्रयोग मे लाया था.....!!!