बचपन ही है मेरा...😇😇


बूढ़ी नीम के सूंखे तने से
फूट कर निकला,
कोमल - हरे पत्तोँ वाला
बरगद का पेङ
और
उसके नीचे वाला कुआँ
काफी हद तक
मेरा बचपन ही हैं…...!

वो गाँव के उस आखरी छोर पर
लगभग खँडहर में तब्दील हो चुका
पुराना मन्दिर,
और
प्रांगण में झुकी हुयी डाल वाला
वो बड़ा सा आम का पेंड़,
काफी हद तक
मेरा बचपन ही हैं……!!

जाड़े के मौसम में
जलता हुआ
बड़े से सूखे तने का अलाव,
और
छोटी - छोटी,
धुँआ निकालती खोखली लकड़ियों
को बड़े-बूढ़ों से नजर बचाकर
बीड़ी समझकर पीना,
काफी हद तक
मेरा बचपन ही है…..!!!

भरी बरसात में
झूठ - मूठ फिसलना
कीचड़ में गिरना
फिर बारिश में नहाना,
और
जगह - जगह उगे आम के छोटे - छोटे पौधों
से पपीहरी बना
दिन भर उसे बजाना,
काफी हद तक
मेरा बचपन ही है…..!!!!

गर्मी के मौसम में
खलिहान की धुप से बेहाल होना
मगर
स्कूल से आते ही
बस्ता फेंक
गुल्ली डंडा खेलने दौड़ जाना,
फिर
किसी पोखरी - तालाब में नहाना,
काफी हद तक
मेरा बचपन ही है …..!!!!!

मौसम कोई भी हो
अपनी करतूतों पर
निरंतर माँ से डाँट खाकर
ताई जी के पास भाग जाना,
फिर
उनके ही साथ खाना
उनके समझने पर थोडा बहुत पढ़ लेना
और रात को लंगड़े भुत वाली कहानी सुन - सुन कर
मन ही मन उसको मार कर
बहादुर बन जाना,
काफी हद तक,
मेरा बचपन ही है…..!!!!!!

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