तू हर वक्त याद आया
बज्म-ए-यार से जब भी कभी हमको बुलाया होगा……!
हर अन्जुमन का अन्जाम
हर बार एक ही आया होगा,
मैं उसे ढूंढता रहा
और
वो किसी गैर के आगोश में समाया होगा....!!
जबकि मेरे हर अज़ाब का अंदाजा उसने भी लगाया होगा,
जरा ठिठका होगा,
मग़र, दौलत की चकाचौन्ध ने फिर कहीँ मुझको भुलाया होगा…….!!!
इल्म नहीं मुझको, ख़ुद को मेरे लिए क्यों अश्क़िया बनाया होगा,
तमाम असफारात-ओ-इश्क से रूबरू हैं वो
आखिर मुझमे उन्हें, कोई अस्काम नजर आया होगा…..!!!!
देखकर तुझको ख्याल खानुम का मेरे जहन में उतर आया होगा,
अफ़सोस मग़र
देख गैर होता हुआ तुझको, गिरया फरमाया होगा…..!!!!!
अब तलक इल्म है मुझको, तेरे शहर की आबो-हवा का,
मत कहना कि मेरा इश्क बेचते हुये, तेरे ख्याल में मेरा अक्स ना आया होगा…..!!!!!!
नीलाम होते हुए देखे हैं, कितने चश्म-ओ-चराग इस जहाँ में,
यकीन है मुझको,
ये जफ़ा करते हुये, एक बार तुझे लुटेरा याद तो आया होगा……!!!!!!!
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