आवारगी

 १

ये दायरे, ये बंदिशें

किसी और पर थोपो


मैं हवा का झोंका हूं

मुझे आवारगी पसंद है.....!!


इश्क -ओ -ऐतबार की

बंदिशों में बंधकर रहना नहीं आता,


मैं आवारा हवा हूं फजाओं की

मुझको कहीं ठहरना नहीं आता.......!!


किसी को दौलत में

किसी को शोहरत में

तो किसी को बंदगी में मजा आता है,


मैं बंजारा मजाज़ हूं, साहब

मुझको बस आवारगी में मजा आता है......!!


खैरात में नहीं मिली

मुझको ये मुफलिसी

ये आवारगी, ये बेबाक लहज़ा,


बहुत मशक्कत की है मैने

खुद को इतना बरबाद करने के लिए.......!!


बहुत मुतासिर है

तेरे हुकूक से वजूद मेरा,


ऐ हवाओं 

मुझको इल्म दो

तमाम बंदिशें मिटाने का......!!







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