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War of Brotherhoods - Unraveling the Web of Deceit: A Gripping Tale of Loyalty and Betrayal

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In the realm of thriller novels, few books manage to captivate readers with their intricate plotlines and well-crafted characters. Sumit Agarwal's "War of Brotherhoods" is one such masterpiece that will keep you on the edge of your seat, questioning the true meaning of loyalty and brotherhood. Sumit Agarwal's protagonist, Kabir, is a military intelligence officer with a penchant for uncovering secrets. When a plane carrying Indian soldiers crashes under mysterious circumstances, Kabir is tasked with unraveling the truth. As he delves deeper into the investigation, he finds himself entangled in a complex web of deceit, where the lines between loyalty and betrayal are constantly blurred. One of the standout aspects of "War of Brotherhoods" is its well-researched and detailed narrative. Agarwal's expertise in military intelligence shines through, making the plot all the more believable and immersive. The characters are multidimensional and relatable, with e...

तेरी खुशबू में लिपटे हुए खत

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 तेरी खुशबू में  लिपटे हुए कुछ खत गदगद हुए जाते हैं रखे हुए दराज में, तेरी ख़ामोशी में  बिखरे हुए लिहाफ अब भी सिसकते हैं घर के किसी कोने में चुप सी आवाज़ में, तेरे मखमूर से  बदन की मादक मुश्क लिए मेरी कमीज़ अब भी टंगी है किंवाड़ के पीछे, तेरे लरज़ते हुए सुर्ख होंठो का एहसास लिए हुए एक तौलिया अब भी गुमान करता है अपने हुसूल-ओ-कामरानी पे, तेरे गेसुओं का स्याह संदलापन लिए वो तकिए खूब गुरुर करते हैं तेरे बदन के छुअन की कामयाबी पर, हमारे लम्स की मदमस्त आहों की  गवाह दीवारें खुद को कमजर्फ कहते हुए तुझे ढूंढती हैं ऐसे दौर - ए -खलवत में मेरे फजूल चुटकुलों पे  तेरे कहकहों की आवाज लिए क्या क्या बाते गढ़ते हैं घर के कमरे सारे, और तेरी कुरबतों की उल्फतों का अथाह दरिया लिए खुदी बहती रहती है किसी बवंडर में.......!!

देवों के देव महादेव

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  वो ज्ञान है, अज्ञान है वही जड़-चेतन, महापुराण है, वो राग है, वो गान है वो स्वरमयी भगवान है, वो काल है, विकराल है शितिकण्ठ वो, वही महाकाल है, वो सूक्ष्म है, विशाल है वही आज, वही अनंतकाल है, जीवन भी वो, है मृत्यु भी वही अनन्त है, सर्वज्ञ भी, भय भी वो, अभय भी वो है विश्वेश्वर, यज्ञमय भी वो, वो अस्त्र है, वही शस्त्र है वही स्वरमयी, परशुहस्त है, वो सक्त है, आसक्त है वही त्रिपुरान्तक, पंचवक्त्र है वो प्राण है,  पाषाण है वही शाश्वत, स्थाणु है, जय भी वो, विजय भी वो है व्योमकेश, मृत्युंजय भी वो, उत्पत्ति है, अवरोध है हर शक्ति का वही बोध है, प्रमाण है, प्रत्यक्ष है वही वामदेव, विरुपाक्ष है, वो अंत है, आरम्भ है वही अपवर्गप्रद, प्रारम्भ है, वो शूल है, वो पाणी है वो शामप्रिय, मृगपाणी है, वो भद्र है, अभद्र है वही गिरिश्वर वीरभद्र है, वो श्रष्टि है, वो दृष्टि है वही भगनेत्रविद, गंगवृष्टि है, सुघड़ भी वो, अवघड़ भी वो वही दुर्धुर्ष, व्रषभारूढ़ भी है, वो शान्त है, वो उग्र है वही दक्षाध्वरहर,  अव्यग्र है, वो प्रेम है, वही पाश है वही शिवाप्रिय सर्व -श्वास है, शिव भी वो, शंकर भी वो है दिगंब...

आवारगी

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 १ ये दायरे, ये बंदिशें किसी और पर थोपो मैं हवा का झोंका हूं मुझे आवारगी पसंद है.....!! २ इश्क -ओ -ऐतबार की बंदिशों में बंधकर रहना नहीं आता, मैं आवारा हवा हूं फजाओं की मुझको कहीं ठहरना नहीं आता.......!! ३ किसी को दौलत में किसी को शोहरत में तो किसी को बंदगी में मजा आता है, मैं बंजारा मजाज़ हूं, साहब मुझको बस आवारगी में मजा आता है......!! ४ खैरात में नहीं मिली मुझको ये मुफलिसी ये आवारगी, ये बेबाक लहज़ा, बहुत मशक्कत की है मैने खुद को इतना बरबाद करने के लिए.......!! ५ बहुत मुतासिर है तेरे हुकूक से वजूद मेरा, ऐ हवाओं  मुझको इल्म दो तमाम बंदिशें मिटाने का......!!

वो दोस्त......

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 जो स्कूल में सँग-सँग मार खाये.... वो दोस्त जो क्लास में बेवज़ह हँसाये.... वो दोस्त आपके होमवर्क न कर लेन पे जो अपना भी होमवर्क न दिखाये..... वो दोस्त जो लंचबॉक्स चलती क्लास में खाये ..... वो दोस्त जो आपकी हर क्रश को अपनी भाभी बनाये.... वो दोस्त जो ख़ुद सिंगल रहकर लड़की पटाने के नुस्ख़े बताये..... वो दोस्त जो मार खाकर भी आपके साथ मुस्कुराये..... वो दोस्त जो नशा बुरी चीज है ये बात बताये..... वो दोस्त जो पहली सिगरेट आपके हाँथो में पकड़ाये..... वो दोस्त जो बीयर पीने के तरीके सिखाये..... वो दोस्त जो धुत्त नशे में होने पर भी दारू का पेग बनाये.... वो दोस्त रात को बारह बजे के बाद नशे में मैगी बनाये.... वो दोस्त बैठे-बैठे अचानक पहाड़ों पर जाने का प्लान बनाये.... वो दोस्त जो आपकी ख़ातिर कितनों से भी भिड़ जाये..... वो दोस्त रात को धुत्त होकर गर्लफ्रेंड की गली में जाने की गरारी अटकाये..... वो दोस्त सुबह उठते ही ठेके पहुँच जाये..... वो दोस्त कड़की में भी जिसकी जेब से 500का नोट निकल आये..... वो दोस्त सारे ऐब में साथ दे मग़र मुँह भी बनाये.... वो दोस्त शरीफ़ों का चेहरा लेकर सबसे हरामी प्लान बनाये.... वो दोस...

ओ कैलाशी

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हे दीनों के दाता ओ भाग्य विधाता तुम ही हो सुखरासी जो तू न चाहे तो साँस भी अन्दर डग न भरे रुक जाये कंपन ह्रदय का जीवन आगे पग न धरे तेरी ही करुणा के सागर में हम जीवित हैं हे अविनाशी तेरे ही चक्षु हैं जिसमें है सारी श्रष्टि बसी तेरे ही कण्ठ में विष मंथन का सारा व्याप्त है हे देवों के देव तुम महादेव तुम हो कण-कण के वासी तू जो न होता तो मिट जाती ये धरती सारी हो कोई भी काल तू बन विकराल है सब पे भारी ने नागों के धारी हर दानव पे भारी तुम हो घट-घट के वासी तुमने ही धारा है गंगा को अपनी जटाओं में तुमने ही मान दिया है चाँद को अपनी मस्तक-लताओं में तुम पर है निर्भर इस जग का हर एक वासी तुम नाथ हो अनाथ के,  ओ कैलाशी

मैं ही ओंकार हूँ......!!

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मैं शूर हूँ मैं वीर हूँ मैं साहसों का धीर हूँ मैं वक़्त की पुकार हूँ हां... मैं ओंकार हूँ............१ मैं सत्य से डिगूँ नहीँ वैरी को भी छलूँ नहीँ, हर युद्ध का मैं सार हूँ हां... मैं ओंकार हूँ.............२ मैं द्वन्द में विजयी हूँ हर पाश में अजेय हूँ मैं शक्ति का आकार हूँ हां... मैं ओंकार हूँ............३ मैं आग से जलूँ नहीँ मैं शस्त्र से कटू नहीँ हर विघ्न का अंधकार हूँ हां... मैं ओंकार हूँ...........४ कोई मोह-पाश है नहीँ कोई द्वेष-भाव है नहीँ मैं ऊर्जा का संचार हूँ हां... मैं ओंकार हूँ...........५ कोई भय मुझे लगे नहीँ कोई क्षय मुझे छुये नहीँ मैं विकार का विकार हूँ हां... मैं ओंकार हूँ............६ मैं पाप पर नकेल हूँ निष्पाप का मैं खेल हूँ मैं सिंह की दहाड़ हूँ हां... मैं ओंकार हूँ............७ मैं पापियों का नाश हूँ हर पुण्य की मैं आस हूँ मैं श्रष्टि का संहार हूँ हां... मैं ओंकार हूँ............८ मैं राग हूँ - विराग हूँ दहकती एक आग हूँ मैं खुद में सर्वकार हूँ हां... मैं ओंकार हूँ.............९ मैं ज्ञान हूँ विज्ञान हूँ मैं वेद और पुराण...