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ऐसा भी होता है

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लो अब यहाँ ऐसा भी होता है जागती है हैवानियत इन्सान मग़र बेफिक्र हो सोता है…….! झुक जाते हैं महफ़िल के तमाम चेहरे खुद-ब-खुद, जिक्र इन्सानियत का जहाँ होता है लो अब यहाँ ऐसा भी होता है…….!! आ जाते हैं परिन्दे खुद ही से जिन्दा लाश को नोचने कत्ल इन्सानियत का जहाँ होता है लो अब यहाँ ऐसा भी होता है…….!!! टूटकर बिखर जाते हैं खुद-ब-खुद दिल के अरमान सारे कोख में बेटी का जीवन खत्म होता है लो, अब यहाँ ऐसा भी होता है…….!!!! चन्द कागज के टुकड़ों के लालच में कितनी बहुओं का जिस्म जिन्दा सुलग जाता है लो, अब यहाँ ऐसा भी होता है……..!!!!! गैरों पे क्या भरोसा, विश्वास क्या डर तो भाई को भाई से होता है जब घात पर घात हर घात पर प्रतिघात होता है लो, अब यहाँ ऐसा भी होता है………!!!!!! मर्म दिल का नहीं जानते अपनों के अब सगा तो बस अच्छे हालात वाला होता है लो, अब यहाँ ऐसा भी होता है…….!!!!!! दिन भर में कितने झूठ हम बोलते हैं सबसे कितनो का सोचना किसी की बरबादी से खत्म होता है लो अब यहाँ ऐसा भी होता है………!!!!!!!

वो तुम ही तो हो........👰👰

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इस जहाँ को भूलकर खुद को खुद में समेटकर अपनी इच्छाओं को बटोरकर अपने अंतर्मन को टटोलकर मेरी रूह जो चाहत भरा गीत गाती है वो गीत तुम ही तो हो…….! यादों में खोकर सर्द मौसम में गर्म सांसों की तपिश से मदहोश खोकर वो गुजरे हुये लम्हों की चादर ओढ़कर तेरे लबों से निकले हर अल्फाज को बेतहाशा चूमकर जो आशा मुझे खुद में वापस लाती है वो मनमीत तुम ही तो हो…….!! तुझ से चाँद की आश में सूरज की लाली को छोड़कर तुझे पाने को इस सारे जहाँ से मुँह मोड़कर तेरे आगोश में आने को ये महफ़िल-ओ-रुआब से सदा के लिये नाता तोड़कर जो चाह मुझे खीँच ले जाती है वो गम-ओ-गुसार तुम ही तो हो…….!!! जहाँ की शर्म-ओ-हया को छोड़कर जिसके ख्याल में मशगूल हूँ मुफलिसी में भी दिन कई गुजारकर जिसके इश्क की पनाह का कायल हूँ वो जानशीं मेरा हमसफ़र मेरे ख्यालो की आराइश तुम ही तो हो…..!!!!