कांवड़ यात्रा - आस्था के नाम पर खिलवाड़

       

मैं पिछले 8-10 सालों से ऋषिकेश आ रहा हूँ, लेकिन इतना गन्दा और घटिया माहौल यहाँ कभी नहीँ देखा, जितना कि ये श्रावण महीने के 10-15 दिनों ने दिखा दिया है,
      माफ कीजियेगा लेकिन मैं बात कर रहा हूँ भोले बाबा के भोले भक्तों की, जिनकी वजह से यहाँ पर आये भारतीय परिवार और विदेशी सैलानियों का जीना और खुल कर घूमना हराम हो गया है, 

      ये लोग कहने को तो भोले के भक्त हैं, और यहाँ पर कांवड़ लेकर आये होते हैं, लेकिन ये कांवड़ यात्रा भक्ति और आस्था का विषय न होकर इनकी कुंठित मानसिकता को पूर्ण करने का एक साधन मात्र रह गया है,

     इस पूरी यात्रा के दौरान शायद इन्हें इतना पुण्य मिल जाता है कि ये किसी गरीब को सताने, लड़कियों पे बुरी नजर और अश्लील टिप्पणी करने, मादक नशे, झगड़ा, गाली-गलौच, शोर-गुल और किसी भी तरह की असामाजिक कुकृत्यों से इन्हें माफी मिल जाती होगी,

      कहने को मेरी बातें जरूर बुरी लगेंगी, लेकिन जो मैंने इस कांवड़ यात्रा के दौरान देखा उनमे से कुछ एक बेहद आम मग़र जिसके साथ होता है उसके लिए शर्मनाक वारदातें लिख रहा हूँ -

1. आजकल यहाँ विदेशी सैलानियों का रहना दूभर हो गया है, क्योंकि ये कांवड़ यात्री इनको देखते ही दूर तक इनका पीछा करते हैं और उन्हें छूने और पकड़ने की पुरजोर कोशिश रहती है किसी न किसी बहाने।

2. कुछ भारतीय परिवार भी जो इस पावन महीने में अपने घर की बहू बेटीयों के साथ घूमने निकले हैं, उनका भी जीना दुश्वार है।

3. स्नान करते वक्त ये वही जगह देखकर कपड़े उतारते हैं जहाँ कोई लड़की या औरत स्नान कर रही हो।

4. स्नान करने के बाद ये अपने कपड़े पुण्य अर्जित करने के बहाने गँगा जी में ही फेंक देते हैँ, जिससे गंगा जी अशुद्ध हो रही हैं और सरकार के गंगा शुद्धिकरण project पर लाखोँ का खर्चा।

5. घर से लायी हुई खाद्य सामाग्री गंगा किनारे खाकर बचा हुआ सामान नदी में प्रवाहित कर देते हैं जैसे कि ये कोई पुण्य नदी न होकर कोई कचरे का गड्ढा मात्र हो।

6. गाँजा, भाँग, चरस, सिगरेट, बीड़ी, गुटखा का तो कली ठिकाना ही नहीँ है, ये लोग कहीँ भी बैठकर चिलम भरकर सुलगाने लगते हैं और गुटखा थूकना तो एक कला है इनकी सड़क को रँगीन बनाने की।

7. गरीब चायवाले जिनसे ये अधिक से अधिक मात्रा में सामान लेकर और कम से कम बताकर पैसे मारने की कोशिश करते हैं, उसके विरोध करने पर मारने की धमकी, गालियाँ और कई बार तो हाँथ भी उठा देते हैँ।

8. क्योंकि ये अधिक संख्या में होते हैं इसलिए ये रास्ते मे हर तरह की मनमानी, अश्लीलता, गुण्डा गर्दी करते हुए चलते हैँ।

           प्रशासन इन घटनाओं को रोकने के प्रयास के नाम पर महज दिखावा कर रही है, जो पुलिस कर्मी उस देख रेख में लगाये हैं वो निहायत ही कमजोर व्रद्ध या महिलाएँ हैं, जिनसे कुछ समहलेगा नहीँ, इन पुलिस कर्मियों की कोई नहीँ सुनता, और अब तो मैं देख रहा हूँ कि ये खुद भी किसी घटना को देख कर अपनी आंख-कान बन्द कर लेते हैँ, क्योंकि हजारो श्रद्धालुओ के बीच 2-4 पुलिस कर्मी कर भी क्या लेंगे।

         ये बहुत साधारण सी घटनाये लिख पाया हूँ, क्योंकि कलम की मर्यादा और भोले के नाम का इससे ज्यादा अपमान उचित नहीँ होगा, इसलिये अगर किसी की मानसिक या धार्मिक भावना को कष्ट पहुँचा हो तो ईश्वर और आप दोनों मुझे माफ़ कर दीजिए।

धन्यवाद
🙏🙏

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