एक यात्रा समाज की

        मुझे समझ नही आता कि लोग खुद को क्या समझते है,  सबसे जादा समझदार , होशियार , खूबसूरत या फिर हद से जादा अक्लदार |
           ऐसा मैने एक बार नही कयी बार देखा है, सच कहूँ तो सिर्फ देखा ही नही बल्कि सामना भी किया है. कि किस तरह खुद को ऊँचा बनाने के लिये,  या बेहतर साबित करने के लिये लोग दूसरो को नीचा और घटिया  साबित करने पे जी जान से उतर आते हैँ.
       सामने वाले कि कोई गलती हो न हो, उसका उनसे कोई ताल्लुक हो ना हो, चाहे वो उन्हेँ जानता भी ना हो, पर उन खुद को शानदार समझने वले लोगो को इससे कोई मतलब नही, वो हर हाल मे उन्हेँ जलील कर्के हो छोडेँगे.

      खैर अब जादा न बोलूँ नही तो मै भी कोई शहँशाह नही हुँ क लोग मुझे ऐसे ही जाने देँ. चलो आज की ही एक छोटी
सी बात बताता हुँ -

         आज मै अपने कुछ दोस्तो के साथ बाहर घूमने गया था. काफी देर घूमने के बाद हमे थोडी सी भूख लग गयी थी थोडी सी क्या दर असल कुछ जादा ही भूख लगी थी.......
   सच तो ये है क उन्हे नही पर मुझे भूख लगी थी. तो मैने सबसे कहा कि चलो कुछ खा लेते हैँ.  वहाँ वैसे तो कुच खास नही था खाने को लेकिन पास मे ही एक छोटी सी दुकान पर आलू पूरी वाला था तो हम तीनो वही जाकर बैठ गये और उसको पूरियाँ लाने के लिये बोल दिया.
     अभी कुछ ही देर हुयी थी, पूरियाँ तो अभी आयी भी नही थी. बेशक हम बहुत  बेसब्री से इन्तजार कर रहे थे पर आने मे अभी काफी वक्त लगना था. 
     तब तक क्या करते ???? 
      तो सीधी सी बात है कि जब लडके साथ मे होते है तो अगर कोयी जरूरी बात ( जो कि बहुत कम होती है)  नही चल रही है तो सबसे जरूरी बात चलती है.
जो कि या तो लडकियो की बातेँ करना होता है या फिर लडकियाँ देखना. 
    तो बस हम भी अपना लडके होने का फर्ज पूरा कर रहे थे, अर्थात बाबा के शब्दो मे हम लडकियाँ ताड रहे थे. वैसे तो बातेँ भी करते लेकिन भूख लगी होने की वजह से (या फिर ये कह लो कि हम अपनी energy waste नही करना चाह रहे थे) हम जादा बोल नही रहे थे.
     वहाँ कुछ और लोग भी थे जो कि हमसे बिल्कुल भी अलग जाति के नही लग रहे थे. मतलब वो भी अपना लडका धर्म पूर कर रहे थे. अच्छा आप कभी भी थोडा सा ध्यान देँगे तो आप्को एक बात जरूर समझ आजायेगी कि ऐसे मौके पर दोस्ती और एकता की भावना भी कुछ जादा हि दिखती है.
      कुल मिलाकर हम बहुत ही लगन और करतव्यपरायडता के साथ  व्यस्त थे अपनी बहुत ही महत्वपूर्न कार्यकलापो मेँ. तभी अचानक से एक भाई चीखा, " ओ भाई ये सब छोड उधर देख क्या गजब की लडकी आ रही है"
     अब हमने भी उसका पूरी तरह से भरोसा किय और जितने भी बैठे थे वहाँ सबने एक हि झटके से पलटकर उधर देखा जिस तरफ देखने का फरमान आया था.
    वाकयी लडकी देखने मे बहुत अच्छी थी, अब हम सब तो बहुत एह्सानमन्द हुए उस भाइ के जिसने कि हमे बताया था और बडी हि भावपूर्न नजरो से उसे देखा. और वो भी पूरी तरह से हर तरह के गर्व मे भरकर और अकडकर खडा था बिल्कुल ऐसा लग रहा था कि जैसे उसने लडकी देखने को नही बोला बल्कि वो उसको जानती है और उससे ही मिलने आ रही हो.
   खैर जो भी हो हम तो उसका एह्सान मान ही रहे थे और वो भी बहुत घमन्ड के साथ सीधा तनकर खडा हुआ था. सबकी नजरेँ एक हि जगह सधी हुई थीँ. (जायज सी बात है कि लडकी के उपर्).
         वैसे तो अब तक हमारी पूरियाँ आ चुकी थीँ और अभी तक जैसे हम इन्तजार कर रहे थे पूरियो के आने का शायद ठीक वैसे ही पूरियाँ इन्तजार कर रही होगी हमारे इस दुनिया मे वापस आकर उन्हेँ खाने का.
     लेकिन सच तो ये है कि हमेँ कहाँ फुरसत कि हम वहाँ से नजरे य दिमाग य फिर दिल मे से कोई भी एक चीज हटा पायेँ और गरमा गरम पूरियो को ठन्डा होने से पहले खा पायेँ, पेट हमारा भर जाये और अपने ही भूखे पेट को भरकर बेचारे पापी पेट की दुआयेँ ले पायेँ.
        कुछ लोग तो शायद अब तक किसी और ही दुनिया मे पहुँच चुके थे, या फिर बाबा के शब्दो मे ये कह लो कि शायद उसको बीवी बनाकर 4-5 बच्चो के सपने भी देख चुके थे.
     अभी तक तो सब कुछ ठीक था पर जब वो लडकी थोडा आगे निकल गयी,
 शायद सबको ये एहसास हो गया था कि अब जिन्दगी भर के लिये वो हाँथो से निकल गयी, 
अब कर भी क्या सकता था कोई वहाँ,
 क्युँकि सच तो ये था कि वो किसी और की थी, और उसके साथ ही साथ हमको नजर अन्दाज कर गयी.
    अब यहाँ जागा सबका एक और धर्म्, हान जी एक ऐसा धर्म जो काबिज है मनवता पर और जिसका अभी तक कोइ तोड नही मिला है, 
शायद आप लोग समझ गये होगे कि मै बात कर रहा हूँ मानव धर्म की. और मानव धर्म कि सबसे बडी खूबी इर्श्या है जलन है.
      तो अब वो तो जागनी ही थी, क्युँकि जिसके साथ पल भर मे जिन्दगी के कयी सपने देख लिये थे वो तो किसी और के साथ चली गयी और जाती भी क्युँ नही क्युँकि वो तो उसकी ही थी.
   अब सब के सब परेशान हो गये अपनी किस्मत को कोसकर उस लडके की किस्मत लिखने वाले खुदा के लिये भी हैवान हो गये,
   गलती खुदा की बस इतनी थी कि उनको ना देकर वो लडकी किसी और की किस्मत मे लिख दी थी.....
       अब बेचारा कोइ कर भी क्या सकता था, इसलिये सब थोडे से बेचैन थे, भूख तो सब्को लगी हुई थी, पर उस हूर के लिये तरस रहे सबके नैन थे....
   सबका हाल ऐसे कसाई कि तरह हो गया था कि जैसे उनकी दुकान मे कोइ ग्राहक ना आ रहा हो और सामने वाली दुकान मे लम्बी सी कतार (लाइन्) लगी हो. तो उस वक्त वो सिर्प सामने वाले की बुराई करता है.
    तो बिल्कुल इसी मानदन्ड पे खरा उतरते हुए एक भाई जो वहाँ पहले से बैठे हुए थे उनसे रहा नही गया ( शायद वो कुछ जादा हि बडे सपने सजा चुके थे) और बात बर्दाश्त के बाहर हो गयी तो अपना सारा ग्यान समेटकर बेचारे बोल ही पडे, " क्या बेवकूफ लडकी है यार , खुद इतनी अच्छी है और ये किस नन्गे लुच्चे को अपने साथ लेकर घूम रही है, इतना मोटा, काला साला भिखारी सा लग रहा है, इसे कोइ और नही मिला था क्या, हम क्या मर गये थे ? "
( दर असल उन्होने और भी बहुत अच्छे शब्दो मे उस बेचारे लडके का और उसके खानदान्, विशेसकर उसकी माँ और बहन पर कुछ जादा हि अच्छी क्रिपा द्रश्टि बरसाई )
    अब उनकी बात सुनकर सबका मन थोडा सा हटा, पिछले 10 मिनट मे शायद पहली बार सबकी पलकेँ झपकीँ , कुछ लोग उनकी बात से सहमत भी हुए और जो नही सहमत थे वो सिर्फ इसलिये कि वो ये सुनना नही चाहते थे कि वो अपना नाम जोडे उस हूर परी के साथ्, क्युँकि उनकी समझ से तो इस काल्पनिक स्वयम्वर क सबसे योग्य वर वो लोग खुद थे.
      वैसे अब तक लडकी जा चुकी थी अपने पति के साथ या उसका प्रेमी हो य चाहे पिर दोस्त ( या कोई भी अन्य सामाजिक रिस्ता हो), पर वो चली गयी थी लेकिन वो इस मेहफिल्-ए - स्वयँम्वर मेँ शान के साथ गुलजार थी.
      मैने भी सोचा कि बाबा कहते हैँ कि, "जो चला गया है उसके लिये रो मत्, बल्कि कुच और अच्छा पाने क लिये मेहनत करो".
     तो जय बाबा बोल कर और अपना प्यासा मन मारकर खाने को बडे दुखी मन से देखा कि जैसे जबरदस्ती खाना पड रहा हो, यही मानकर खाना शुरू किया. और कुछ भी अचा नही लग रहा था फिर भी मैने खाया ये मानकर कि भाई खाने क बिना तो कोइ जी नही सकता.
      पर कुछ लोग तो बेचारे पूरी वाले को गालियाँ देकर उस लडकी से बिछड जाने के गम का दोसी मानकर उससे बदला ले रहे थे, बस वजह कोइ और निकाल रहे थे जैसे कि ठन्डा पडा है सब कुछ्, खाने मे नमक नही है, ये कैसे घटिया पूरियाँ सेँकी है और्, और भी बहुत कुछ्.......................

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      तो चलिये दोस्तो ये तो बहुत मामूली बात थी जो भी मैने लिखा है पर सोचने वाली बात ये है कि खुद को कमजोर देखकर और खुद की कमी जानकर जब हम किसी सामने वाले की जो कि बहुत मजबूत है, उसकी कितनी बेइज्जती करते हैँ. उसकी कोइ गलती नही होती पर उसकी अच्छाई को ही उसकी गलती बन देते हैँ.
   जैसे कि वहाँ पे उस लडके को सबने ना जाने क्या क्या बोला. जबकि उसकी क्या गलती थी कुछ भी नही, पर बेचारे ने कितनी गालियाँ सुनी.
     तो ये है हम और अभी तक यही है हमारा समाज्. कि अगर हम कुछ नही हैँ, तो जो इन्सान कुछ है उसको नीचे बताओ ना कि ये कि खुद को ऊपर उठाने क लिये कोइ उपाय करो.

 धन्यवाद
 जय बाबा

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