Posts

Showing posts from July, 2016

मेरा पहला स्पर्श

Image
मैं बहुत छोटा था ना माँ इसलिए मुझे याद नहीँ, लेकिन अभी समझ सकता हूँ कि वो तुम ही होगी जिसका ममतामयी #स्पर्श मुझे इस वीभत्स दुनिया में कदम रखते ही सबसे पहली बार मिला होगा…..! अबोध होने के कारण मुझे ज्ञात नहीँ पर आज महसूस कर सकता हूँ कि तमाम तकलीफें सहने के बाद भी, जब मैं तुम्हारी गोद में आया होऊंगा, तो तेरी हर तकलीफ भूलकर हर सौहार्द से बढ़कर निस्वार्थ हो तूने मुझे अपने दुलार और पुचकार के #स्पर्श से सहलाया होगा……!! बेशक तुम खुद भूखी रह जाती होगी लेकिन मुझको थोड़ी - थोड़ी देर में अपना दूध पिलाया होगा, मेरे गीले बिस्तर पर खुद सोकर, मुझको सूखे में सुलाया होगा, लाख परेशानियां दी हों मैंने तुमको, मगर तुमने मुझे हर संभव सुख का ही #स्पर्श कराया होगा.…!!! मेरे बड़े होते-होते तुमने कितनी यातनाएं सहन की होंगी मेरी गलतियों पे कितनी बार डाँट तुमको पड़ी होगी, मगर तुम सब  कुछ सह लेती होगी, और वक्त मिलते ही मुझे गोद में उठा चूमती हुयी थपकियाँ देती होगी और मैं होठों और हाँथों का दुनिया का सबसे स्वार्थ रहित और ममत...

कलंकी बेटा

Image
   वैसे तो अमित हम सबसे बिलकुल भी अलग नहीं था, सिवाय इसके की वो बिन बाप का एक गरीब बेटा था, और प्रकृति की इस क्रूर नियत को हमारे गाँव के लोग समझते हुए भी नासमझी करते थे, और तरह - तरह की बातें करते थे ।          कितनी बार् मैंने खुद के ही घर में उसकी मां के खिलाफ गैर मर्दों से नाजायज सम्बन्ध रखने की बात सुनी होगी, लेकिन बचपन में इन चीजों का खासा मतलब नहीं पता होता था, तो जब भी सुना बेमतलब की बात समझ कर भूल गया ।          बेशक मैंने घरवालों से कयी बार डाँट खायी होगी की अमित के साथ मत खेला कर, वो ऐसा है उसकी माँ वैसी है, समाज में नाक कटती है हमारी, लेकिन मैं भी सब कुछ सुनता और भूल जाता, और मौका मिलते ही हम गाँव के मंदिर वाले मैदान में पहुँच जाते, और फिर होने दो कुश्ती तो कभी कबड्डी ।            खैर बचपन के दिन भी गली-मोहल्ले में कभी गुल्ली-डन्डा तो कभी लुका-छुपी खेलते हुए गुजर गए, वक्त बदलता रहा, हमारी उम्र के साथ-साथ ह...

ना मैं हिन्दू हूँ - ना ही मुसलमान हूँ

Image
मुझे ज़रा भी परवाह नहीं उन फिजूल के रिवाजों की, जो मुझे इंसान होने से रोके, जो कहना है कहते रहो, मैं तो ईद की सेवईयां और दिवाली की मिठाइयाँ एक साथ बैठकर खाऊंगा…….! मैं बेफिकर हूँ उन सियासत के चाटुकारों से जो मुझे इंसान होने से रोके, जो करना है करते रहो मैं तो मन्दिर की आरती में भी जाऊँगा और मस्जिद की नमाज में भी सर झुकाउंगा…..!! मुझे मतलब नहीं उन धर्म के ठेकेदारों से जो मुझे इंसान होने से रोके, जो करना है करते रहो मैं कुरआन भी पढूंगा और गीता के श्लोक भी गुनगुनाउंगा…..!!! मेरा रिश्ता नहीं समाज के उन तामीर दारों से जो मुझे इंसान होने से रोके, जो करना है करते रहो मैं तो भगवा रंग का कुर्ता और हरे रंग की धोती पहन कर आऊंगा……!!!! मुझे मोह नहीं उस चौखट से जो मुझे इंसान होने से रोके मेरे कदमों को बांधे, जो करना है करते रहो, मैं काशी विश्वनाथ का तिलक लगाकर मक्के मदीने भी जाऊँगा …..!!!!!

अजनबी की तरह.......🖋🖋🖋🖋📝

Image
सुध - बुध सब खोकर जिसकी तलाश में भटका एक अरसा बाद वो मुझे मिला भी तो किसी अजनबी की तरह…..! सुख-चैन सब गंवाकर, खुद से खुद को चुराकर जिसे हर पल सीने से लगाये रखा, वो आज दूर गया मुझसे, तो किसी अजनबी की तरह……!! साँसों में उसका नाम सजाकर उसे अपनी धड़कनें बनाकर जिसे बेइंतहां चाहा वो मुझसे खफा भी हुआ तो किसी अजनबी की तरह.….!!! खुद को हर पल भुलाकर उसे अपना खुदा बनाकर हर दुआ में जिसको माँगा, वो गैर भी हुआ तो किसी अजनबी की तरह……!!!!

तुझको पाने की बेताबी.....🌹🌹

Image
खो गयी है हर झिझक, तुझको पाने की ही है ललक, बेकसी के दाग, दामन कर रहा है तर - बतर वो हर जफ़ा संगीन हो, मुझसे , तुझको जो कर रही है बेखबर……! न मैं, हो सकूँ तुंझसे खफा, ना तू बन सके मेरा हमसफ़र, आगाज तेरा हो रहा है, तेरी कमी फिर भी मगर, चाहतों की आश में दिल फिर रहा है दर - बदर……!! बिन अश्क नम आँखे हुयीं, सिवाय इश्क, सब बातें हुयीं कुदरतन तेरी चाह है, दिल माँगे तेरी पनाह है, तू करे या ना करे है मुझको तेरी ही फिकर, फिर भी बाकी है कसर……!!! इस खलिश को क्या कहूँ, तेरी चाह को क्या नाम दूँ, तू जानता है मुझको भी, तेरे बिन नहीं मेरा बसर, तेरे आगोश की अब चाह है, मुझमें नहीँ बाकी  सबर…….!!!! न कर सितम मुझपे सनम ना सब्र का इम्तेहान ले, गश खा रहीं हैं ख्वाहिशें, खुश्क से हालात हैं, नासाज होता मेरा हशर, तू लौट आ मेरी जिंदगी तेरे बिन कटता नहीँ लम्बा सफ़र…..!!!!! गर्त में है छुप रहा तेरे बिन जीवन मेरा, बंदिशे हों लाख ही तुझको चाहूँ फिर भी मगर, साँसे रहें या ना रहें दिल की यही एक चाह है, मुझमेँ तू मौजूद हो, ...

बचपन ही है मेरा...😇😇

Image
बूढ़ी नीम के सूंखे तने से फूट कर निकला, कोमल - हरे पत्तोँ वाला बरगद का पेङ और उसके नीचे वाला कुआँ काफी हद तक मेरा बचपन ही हैं…...! वो गाँव के उस आखरी छोर पर लगभग खँडहर में तब्दील हो चुका पुराना मन्दिर, और प्रांगण में झुकी हुयी डाल वाला वो बड़ा सा आम का पेंड़, काफी हद तक मेरा बचपन ही हैं……!! जाड़े के मौसम में जलता हुआ बड़े से सूखे तने का अलाव, और छोटी - छोटी, धुँआ निकालती खोखली लकड़ियों को बड़े-बूढ़ों से नजर बचाकर बीड़ी समझकर पीना, काफी हद तक मेरा बचपन ही है…..!!! भरी बरसात में झूठ - मूठ फिसलना कीचड़ में गिरना फिर बारिश में नहाना, और जगह - जगह उगे आम के छोटे - छोटे पौधों से पपीहरी बना दिन भर उसे बजाना, काफी हद तक मेरा बचपन ही है…..!!!! गर्मी के मौसम में खलिहान की धुप से बेहाल होना मगर स्कूल से आते ही बस्ता फेंक गुल्ली डंडा खेलने दौड़ जाना, फिर किसी पोखरी - तालाब में नहाना, काफी हद तक मेरा बचपन ही है …..!!!!! मौसम कोई भी हो अपनी करतूतों पर निरंतर माँ से डाँट खाकर ताई जी के पास भाग जाना, फिर उनके ही...